Thursday, September 23, 2010

Yajan-Yaajan Sambandhit Prashn

प्रश्न: यदि हमलोग यजन और इष्टभृति अच्छी तरह करें और याजन नियमित रूप से नहीं करें तो उसमें क्या दोष हो सकता है ?
श्री श्री ठाकुर :  याजन किये बगैर इष्ट उपभोग ही जड़वत हो उठता है.  यजन याजन की सहायता करता है और याजन यजन की सहायता करता है.  एक के अभाव में दूसरा दुर्बल हो पड़ता है.  याजन के द्वारा यदि परिवेश को धर्ममुखी नहीं बनाते हो तो तुम्हारा धर्म भी नहीं टिकेगा.  हमारे जीवन का एक प्रधान अंग है परिवेश.  जब से हम इस परिवेश के प्रति उदासीन हुए हैं तभी से हम बहुत कुछ धर्मभ्रष्ट हुए हैं.  इसलिये आज हम यह सोचते हैं कि व्यक्तिगत  रूप से जप ध्यान करने से ही धर्म होता है, उसके साथ समाज, राष्ट्र या विश्व का कोई संपर्क नहीं ?  किन्तु सर्वतोभाव से यदि बचना-बढ़ना धर्म होता है तो वह धर्म परिवेश को छोड़कर किसी भी तरह धर्म नहीं होगा!  यदि धर्म के साथ मनुष्य की सर्वांगीन जीवन-वृद्धि का कोई संपर्क न रहे तो उस धर्म के साथ मनुष्य का कोई संपर्क नहीं.  
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, आलोचना प्रसंग,  भाग-3 , पृ.सं.-7 

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