YAJAN YAAJAN ISHTVRITY
Friday, May 8, 2009
मेरी बातें
मेरी बातें
विहित भाव से जो अवगत हुआ है
बोध में जो फुट उठा है--
वही दूसरों से बोलो,
जो नहीं समझते हो--
बोलने की लालसा से बोलकर
व्यतिक्रम सृष्टि करके
मनुष्य को विभ्रांत न करो,
न ख़ुद ही होओ।
--: श्री श्री ठाकुर
, याजी सुक्त
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