श्रीश्रीठाकुर : जो रक्षाविधि का जितना पालन करता है वह उतनी ही रक्षा पाता है। चाहे वह नाम ले या नहीं। यदि कोई व्यक्ति पितृभक्त या मातृभक्त होता है तो वे ही उसकी सम्पदा होते हैं। उसकी बोल, चाल, भाषा, कर्म, बहुत कुछ पितृकेन्द्रिक होगी। केद्रानुग यजन, याजन और भरण उसके जीवन में मौजूद रहते हैं एवं ऐसे श्रेय अनुसरण का जो फल मिलता है उससे वह वंचित नहीं होता। फिर भी विधि अनुसार करने से ही मनुष्य को विहित फल की प्राप्ति होती है। नियमित रूप से इष्टभृति करने का फल भी अमोध होता है। इष्टभृति का अर्थ है मांगलिक यज्ञ।
--: श्री श्री ठाकुर, आलोचना प्रसंग -3, पृष्ट सं.-161
आपको भी आपका अभिष्ट प्राप्त हो। ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
ReplyDeleteचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर.हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मेरे ब्लोग पर भी आने की जहमत करें।
ReplyDeletewell done....
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